लघु कथा Pramit

लघु कथा

अंतहीन सिलसिला / विक्रम सोनी

दस वर्ष के नेतराम ने अपने बाप की अर्थी को कंधा दिया, तभी कलप–कलपकर रो पड़ा। जो लोग अभी तक उसे बज्जर कलेजे वाला कह रहे थे, वे खुश हो गए। चिता में आग देने से पूर्व नेतराम को भीड़ सम्मुख खड़ा किया गया। गाँव के बैगा पुजारी ने कहा, ‘‘नेतराम…!’’साथ ही उसके सामने उसके पिता का पुराना जूता रख दिया गया, ‘‘नेतराम बेटा, अपने बाप का यह जूता पहन ले।’’
‘‘मगर ये तो मेरे पाँव से बड़े हैं।’’
‘‘तो क्या हुआ, पहन ले।’’ भीड़ से दो–चार जनों ने कहा।
नेतराम ने जूते पहन लिये तो बैगा बोला, ‘‘अब बोल, मैंने अपने बाप के जूते पहन लिये हैं।’’
नेतराम चुप रहा।
एक बार, दूसरी दफे, आखिर तीसरी मर्तबा उसे बोलना ही पड़ा, ‘‘मैंने अपने बाप के जूते पहन लिये हैं।’’ और वह एक बार फिर रो पड़ा
। अब कल से उसे अपने बाप की जगह पटेल की मजदूरी–हलवाही में तब तक खटते रहना है, जब तक कि उसकी औलाद के पाँव उसके जूते के बराबर नहीं हो जाते।

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विक्रम सोनी